شد خاتم انبيا محمد (ص)

| به به كه چه روز خرم آمد | |
| مبعوث نبى اكرم آمد |
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| بس عيد فرارسيد بى شك | |
| عيدى نبود چنين مبارك |
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| از بعثت او جهان جوان شد | |
| گيتى چو بهشت جاودان شد |
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| اين عيد به اهل دين مبارك | |
| بر جمله مسلمين مبارك |
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| از غيب ندا رسيد او را | |
| آن ذات خجسته نكو را |
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| كاى ذات نكو پيمبرى كن | |
| برخيز و به خلق رهبرى كن |
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| چون قدر و مقام رهبرى يافت | |
| در كوه «حرا» پيمبرى يافت |
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| بشنيد چو اين ندا محمد (ص) | |
| شد خاتم انبيا محمد (ص) |
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| هر روح كه دور از بدى شد | |
| با آمدنش محمدى شد |
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| قانون حيات و هستى آورد | |
| آيين خدا پرستى آورد |
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| پيدا چو شد آن جمال هستى | |
| بشكست اساس بت پرستى |
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| با بعثت آن نبى مرسل | |
| بتخانه به كعبه شد مبدل |
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| هر دم صلوات بر جمالش | |
| بر احمد و بر على و آلش |
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| صد شكر به دين آن جنابم | |
| قرآن مقدسش كتابم |
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| خوشبخت كسى كه امت اوست | |
| در سايه دين و رحمت اوست |
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| از عرش ملك دهد سلامش | |
| شد ختم پيمبرى به نامش |
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| اى داده ز ماه تا به ماهى | |
| بر پاكى ذات تو گواهى |
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| در شأن تو گفت ايزد پاك | |
| لولاك لما خلقت الافلاك |
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| اى بر سر هر پيمبرى تاج | |
| يك قصه توست شام معراج |
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| قرآن كريم حجت توست | |
| خوشبخت كسى كز امت توست |
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| گر زانكه تو بت نمىشكستى | |
| اسلام نبود و حق پرستى |
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| توحيد به ما تو ياد دادى | |
| بتخانه و بت به باد دادى |
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| اى معنى ممكنات درياب | |
| اى خواجه كائنات درياب |
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| ما غير تو دادرس نداريم | |
| درياب كه هيچ كس نداريم |
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| اى آن كه تو يار بينوائى | |
| فرياد رس و گرهگشائى |
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| درياب كه ما گناهكاريم | |
| اميد شفاعت از تو داريم |
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| تنها نه منم به غم گرفتار | |
| غم از دل هر كه هست بردار |
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| اي جان جهان فداي جانت | |
| "شهري" است غلام آستانت |
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"عباس شهرى"